मन की साधना से जीवन में आनंद और शांति का संचार करें....सच्ची साधना से जीवन में परमात्मा की अनुभूति संभव-मुनि अनुपम सागर महाराज
23 अगस्त 2024, केकड़ी-जिस प्रकार मिट्टी के गीली नरम हो जाने पर किसी भी प्रकार से आकर दे सकते हैं । उसी प्रकार मन रूपी देह को जिस प्रकार संवारना चाहते हैं संवार सकते हैं ।इस देह में ही आत्म रुपी परमात्मा का वास है। जिस प्रकार पाषाण में रत्न, दूध में धृत है यदि उसकी विधि सही जान पाएंगे तभी वह पदार्थ मिल सकता है । उसी प्रकार आत्म रूपी साधना को पहचान कर आत्मा से परमात्मा बन सकते हैं। यदि कषाय का शमन कर लिया तो दीक्षा को प्राप्त कर सकते हैं । स्पर्शन इंद्री और रचना इंद्री मानव को विचलित कर देती है । वासना के पीछे अपने परिवार को खत्म कर लेते हैं । यहां वासना इंद्री के वशीभूत होकर मां-बाप तक को छोड़ देते हैं । इसलिए इन दोनों इंद्रियों से बचाने का प्रयास करना चाहिए । इंसान हमेशा भोग रुपी सुख में ही आनंद मान लेता है। यदि आचरण शुद्ध कर लिया तो चरण भी पूज्य हो जाते हैं । अपने धर्म पर कभी शंका नहीं करना चाहिए । इच्छा वासना के प्रति बचना चाहिए। यह बात घंटाघर स्थित श्री आदिनाथ मंदिर में विराजित सत्यार्थ बोध पावन वर्षा योग के अवसर पर आयोजित धर्म सभा में मुनि अनुपम सागर महाराज ने कहीं।
उन्होंने कहा कि वीतरागता मार्ग अपनाने पर ही चिंता से बचा जा सकता है । साधु की दृष्टि मात्र से कार्य की सिद्धि हो जाती है । मंदिर में विराजे परमात्मा और अपने मन में विराजे परमात्मा के प्रति सच्ची आस्था हो जाए तो दर्शन को प्राप्त कर लेते हैं। मीडिया प्रभारी रमेश जैन ने बताया कि आचार्य के चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन, पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट का सौभाग्य समाज के श्रैष्ठीजनों द्वारा किया गया। समाज के दिलीप जैन ने बताया कि 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान की मोक्षस्थली महातीर्थ गिरनार की यात्रा हेतु श्री जैन यात्रा संघ द्वारा 151 यात्रियों का जत्था मुनि ससंघ के आशीर्वाद से तीन बसों द्वारा प्रस्थान हुआ । धर्म सभा का संचालन श्री के.सी. जैन द्वारा किया गया।
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