सांसारिक मोह से मुक्ति के मार्ग पर मुनि सुगम सागर महाराज के प्रवचन
केकड़ी- सांसारिक सुख पाने के लिए प्राणी हर प्रकार का कार्य करता रहता है फिर भी वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता है । व्यापार करता है, नोकरी करता है, धर्म -अधर्म करता है परिवार की खुशियों के लिए बहुत कुछ करता है फिर भी उसे सकून नहीं मिलता है, जिस परिवार के लिए वह सब कुछ करता है वहीं उसे सांसारिक मोह मे जकड़े रखता है, उसे अपने जीवन के कल्याण के लिए वीत राग के मार्ग में अवरोधक बना रहता है ।
"कुछ पाने के लिए कुछ त्यागना पड़ता है, सब कुछ पाने के लिए सब कुछ त्यागना पड़ता है" यदि आपको सांसारिक दलदल से बाहर निकलना हो तो आपको पीछे मुड़कर नहीं देखना होगा अन्यथा आपका परिवार ही आपको वीतराग के रास्ते मे रोड़ा बनेगा ।
प्रीती करो तो धर्म से करो, कर्म से मत करो,कोन जाने किस डगर पर जिंदगी लुट जाएगी, स्वांस का क्या भरोसा, कब रुक जाएगी मुनि सुगम सागर महाराज ने यह अपने प्रवचन के दौरान धर्मसभा में कहे।
उसी धर्मसभा में संत शिरोमणि आचार्य सन्मति सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य सुन्दर सागर महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि इंसान की तरह पत्थर भी अलग अलग रंग के होते है,उन्ही लाल, काले, सफेद, काले पत्थर की मूर्ति बनी होती है,हम उस काले, सफेद पत्थर की बनी मूर्ति में विराजमान भगवान को देखते है,परन्तु काले, सफेद रंग के मनुष्य से भेदभाव करते है । भेद विज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके रंग को नहीं देखकर अंदर स्थित ज्ञान को पहचानना चाहिए ।
प्रातःकालीन नित्यनियम पूजा, जिनाभिषेक, शांतिधारा के पश्चात आचार्य श्री ने श्री नेमिनाथ जैन मंदिर बोहरा कॉलोनी में ग्रीष्म कालीन प्रवास के दौरान ऋषभनाथ जिनालय में कहे । उन्होंने कहा कि सुख व दुःख नरकों व स्वर्गों में नहीं है अपनी आत्मा में है , आत्मा में संतुष्टि है तो सुख है , संतुष्टि नहीं है तो दुःख ही दुख है । आपकी आत्मा में ही ज्ञान है, आत्मा को जानने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है ।
भगवान महावीर व आचार्य सन्मति सागर महाराज के चित्र अनावरण व दीप प्रज्जवल अमर चंद चोरुका,महावीर प्रसाद जैन,निहाल चंद जैन,कैलाश चंद जैन ने किया । आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन भाग चंद,विजय कुमार जैन ने किया । चंद्रकला जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन भागचंद जैन ने किया ।




Post a Comment