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किसी को नीचा दिखाने के बजाय व्यक्ति खुद को ऊंचा उठाएं -मुनि आदित्यसागर जी महाराज।

केकडी। श्रुत संवेगी दिगम्बर जैन मुनि श्री आदित्यसागर जी महाराज ने रविवार को यहां दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में चल रही ग्रीष्मकालीन प्रवचन माला के अंतर्गत धर्मसभा में प्रवचन करते हुए कहा कि व्यक्ति को जीवन में बुरी स्मृतियों को भूलकर सिर्फ प्रेरणादायक स्मृतियों को याद रखना चाहिए और किसी को नीचा दिखाने का कार्य न करके खुद को ऊंचा उठाने का प्रयास करना चाहिए।


उन्होनें मेरी भावना काव्य के सूक्तक 'मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे, दीन दुखी जीवों पर मेरे उर(मन) से करुणा स्त्रोत्र बहे, दुर्जन क्रूर कुमार्गरतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे, साम्य भाव रखूं में उन पर, ऐसी परिणति हो जावे' की व्याख्या करते हुए कहा कि वंचितों, अभावग्रस्तों व जरूरतमंदों की सदैव मदद करनी चाहिए। साथ ही जहां दुर्जन, क्रूर व कुमार्गरत लोग मिले, उनसे दूर रहकर अपना रास्ता बदल लेना चाहिए। उन्होनें कहा कि गलत बातों व कुतर्कों का हर बार जवाब देना उचित नहीं होता। क्रूर व दुर्जन लोगों द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों का साम्यभाव रखते हुए आत्मविश्वास के साथ निडर होकर सामना करना चाहिये। 


मुनि आदित्यसागरजी ने वीतरागता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वीतराग वाणी वह प्रकाश है, जो मन के अंधकार को खत्म कर देती है, वह पावन गंगा है, जो मन के मैल को धो देती है। वीतराग वाणी में न तो कोई डर है, न कोई लोभ, न कोई राग है और न कोई द्वेष। वीतराग वाणी का पहला वरदान है विनय । अपने मन, अपनी वाणी को विनय का केंद्र बनाएं, क्योंकि विनय के बिना किया गया तप ताप के समान है। विनय के बिना संयम भी असंयम में बदल जाता हैं। अपने तन को विनय का मंदिर बनाएं।

उन्होनें सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चारित्र की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ज्ञान से व्यक्ति संसार के स्वरूप को जान लेता है। जीव और अजीव में अंतर को जान लेता है। दर्शन से व्यक्ति सही और गलत को समझकर अपनी श्रद्धा को सम्यक बना लेता है। चारित्र से व्यक्ति जीवन में सही तत्व को अपनाकर सम्यक आचरण द्वारा अपने पूर्व संचित कर्मों का क्षय करके सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष पा लेता है।

धर्मसभा के प्रारम्भ में सज्जन कुमार, संजय कुमार, निधि व युग पांडया परिवार ने आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के चित्र का अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया तथा मुनि आदित्यसागर जी महाराज व मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन कर उन्हें शास्त्र भेंट किये।

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