आत्म अनुशासन से ही आत्मा को परमात्मा तक पहुंचाया जा सकता है- आचार्य सुंदर सागर महाराज
केकड़ी- जिन शासन को समझने के लिए आत्म अनुशासन के प्रति ध्यान लगाना पड़ेगा । आत्मा के प्रति भाव रखने पर परमात्मा बनने के प्रति मोक्ष मार्ग का राह चुन सकते हैं । मन रूपी वासनाओं के निर्विकार वस्त्र को अपने मन में रखकर दिगंबर के प्रति आसक्ति बना सकते हैं इससे आत्म अनुशासन का पालन करते हुए आत्म कल्याण कर सकते हैं । आत्म अनुशासन वह शान है जिससे आत्म मिलान कर सकते हैं मानव अपने जीवन में धनार्जन के प्रति भाव बनाए हुए हैं पर वस्तु में अपने उद्देश्य को लक्षित करके उसको मूल्य समझ बैठे हैं। दिगंबर साधु मात्र स्व कल्याण के प्रति निरंतर आत्मज्ञान में रहते हैं । आत्मा की पहचान पर वस्तु के प्रति पहचान को छोड़ना होगा । सत्ता त्रिकालिक होती है वह कभी भी भटकती नहीं है । वास्तु के स्वरूप को पहचान तो कर लेते हैं लेकिन निज स्वरूप को पहचान नहीं पा रहे हैं । व्यर्थ में इधर-उधर की बातों में उलझे हुए निज में जो आत्मा है उसकी पहचान करने पर ही आत्मा से परमात्मा के निकट पहुंच पाएंगे । हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है निज आत्मा में रहता है वही ज्ञानी होता है । आत्मा की पहचान करने के लिए वितराग जिन शासन को जाना होगा । पांडुक शिला स्थित श्री ऋषभ देव जिनालय में आयोजित धर्म सभा में आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज ने धर्म सभा में कहे ।
प्रातः जिनाभिषेक, शांति धारा, जिनेंद्र अर्चना आचार्य श्री संघ एवं मुनि अनुपम सागर महाराज, मुनि यतीन्द्र सागर महाराज के सानिध्य में श्री नेमीनाथ मंदिर में धार्मिक कार्यक्रम के साथ संपन्न हुई । मीडिया प्रभारी रमेश जैन ने बताया कि आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य भागचंद, ज्ञानचंद, सुनील कुमार धून्धरी परिवार एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अमरचंद, अशोक कुमार, अनिल कुमार कुहाड़ा बुजुर्ग परिवार ने प्राप्त किया। समाज के अमरचंद चैरूका ने बताया कि शाम को आरती, भक्ति, संगीत, जिज्ञासा समाधान आचार्य ससंघ के सानिध्य में संपन्न हुए। प्रतिदिन प्रातः 8ः30 बजे से आचार्य एवं मुनि ससंघ के प्रवचन श्री ऋषभदेव जिनालय में होंगे। बाहर से अजमेर, भीलवाड़ा,मालपुरा आदि स्थानों से पधारे श्रृद्धालुओं ने धर्म लाभ प्राप्त किया । धर्मसभा का संचालन भागचंद जैन द्वारा किया गया।




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