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सपनों के आंगन में मातम, बजरी माफियाओं ने एक और चिराग बुझाया

केकड़ी क्षेत्र में बजरी माफियाओं की बेलगाम रफ्तार ने एक और परिवार को गहरे अंधकार में धकेल दिया। शनिवार को परशुराम सर्किल के पास बजरी से भरे तेज रफ्तार ट्रैक्टर ने बाइक सवार देवेंद्र मेघवंशी (19 वर्ष) को टक्कर मार दी। देवेंद्र जो अपने सपनों को साकार करने की ओर कदम बढ़ा रहा था, उस दिन मौत के कालचक्र में समा गया।


देवेंद्र को तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन जयपुर में इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। गांव पारा में रहने वाले देवेंद्र के परिवार का हाल ऐसा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। परिजनों के आंसू जैसे सूखने का नाम ही नहीं ले रहे, और पिता की नजरें किसी सहारे की तलाश में आसमान की ओर टिकी थीं।

"सपनों का घर मातम में बदल गया"

देवेंद्र घर का बड़ा बेटा था। उसकी सगाई हो चुकी थी, और अगले साल शादी की खुशियां घर में दस्तक देने वाली थीं। घरवालों ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं। लेकिन एक झटके में बजरी माफियाओं ने न सिर्फ उनके घर का चिराग बुझा दिया, बल्कि उनकी सारी खुशियां छीन लीं। अब वहां शादी की शहनाई नहीं, मातम का सन्नाटा है। छोटे भाई को देखकर हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं। वह बार-बार बस यही कह रहा है, "भैया क्यों चले गए? अब हमें कौन संभालेगा?" इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं।

"क्या रुक पाएगा यह आतंक?"

क्षेत्र में बजरी माफियाओं का आतंक किसी जानवर की तरह बेकाबू हो चुका है। उनकी ट्रॉलियां रफ्तार के साथ मौत भी लेकर चलती हैं। देवेंद्र की मौत के बाद लोगों में गुस्सा है। पुलिस ने ट्रैक्टर-ट्रॉली को जब्त कर लिया है और मुकदमा दर्ज कर दिया है। लेकिन इससे देवेंद्र वापस नहीं आएगा। वह माता-पिता, जो अपने बेटे की शादी के सपने देख रहे थे, अब जिंदगीभर उसके गम के साथ जीने को मजबूर हैं।

"हर दिन बुझते चिराग"

देवेंद्र की मौत अकेली घटना नहीं है। हर दिन बजरी माफियाओं की यह रफ्तार किसी न किसी घर के चिराग को बुझा देती है। सड़कें अब जीवन का रास्ता नहीं, मौत का जाल बन गई हैं। लेकिन इन हादसों के बावजूद माफियाओं का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा।



आज देवेंद्र का परिवार टूट चुका है। परिजनों की सिसकियों में वह दर्द है, जिसे सुनकर हर इंसान का दिल कांप जाए। लेकिन क्या उनकी सिसकियां किसी को झकझोर पाएंगी? या फिर यह घटना भी समय के साथ धुंधली हो जाएगी?

देवेंद्र चला गया, लेकिन उसके साथ हमारे समाज और प्रशासन पर कई सवाल छोड़ गया। क्या इन सवालों का जवाब कभी मिलेगा, या फिर हर घर का चिराग ऐसे ही बुझता रहेगा?



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