बच्चों को संस्कारित करें, साधु-संतों के समागम में लाएं: आर्यिका सुरम्य मति माताजी
केकड़ी- मरते समय बेटे को पिताजी पांच उपदेश देकर गए कि बेटा जीवन में मीठा भोजन करना, हाथी बांधना, छाया में आना व जाना,देकर वापिस नहीं मांगना, बांधना फिर नहीं छोड़ना मूर्ख पुत्र ने पांचों बातों का गलत अर्थ लगा लिया व उसने अपना जीवन बर्बाद कर लिया। तभी पिता के मित्र ने बताया कि बेटा मीठा भोजन का अर्थ होता है कि संयम से व कम भोजन करना,हाथी बांधना का मतलब किसी को भोजन पर बुलाने के लिए सम्मानपूर्वक निमंत्रण देना,हमेसा देव शास्त्र गुरु की छत्र छाया में रहना,दान की गई वस्तु को वापस नहीं मांगना व जो नियम आपने लिया है उसे मरते दम तक नहीं छोड़ना । शब्दों का गलत अर्थ निकालने से पुत्र ने अपना जीवन बर्बाद कर लिया था । इसलिए माताजी ने कहा कि अपने बच्चों को संस्कारित करो, उन्हें भी साधु संतों के समागम में लावो ताकि वो अर्थ का अनर्थ ना करे व भावी पीढ़ी भी धर्म के रास्ते पर चलकर समाज व देश का हित कर सके।
आर्यिका सुरम्य मति माताजी ने यह अपने प्रवचन के दौरान धर्मसभा में कहे । उन्होंने कहा कि जो देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है वो सम्यक दृष्टि होता है ।भगवान सर्वज्ञ होता है,वो सब कुछ देख रहा है , हम जो भी अच्छा या बुरा कार्य करते है उसका परिणाम हमें अवश्य भुगतना पड़ता है । उसी धर्मसभा में संत शिरोमणि आचार्य सन्मति सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य सुन्दर सागर महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि दीपावली के दिन सुबह तो आप भगवान महावीर के मोक्ष कल्याणक का लड्डू चढ़ाकर सब कुछ त्यागकर मोक्ष मार्ग की कामना करते है, उसी दिन शाम को धन की देवी लक्ष्मी की पूजा कर धन की कामना करते है ।
हमें धन भी चाहिए ओर मोक्ष भी, दोनो मिलना असंभव है।
आचार्य श्री ने बताया कि आत्मा सबकी एक तरह की होती है तथा हर आत्मा में केवल ज्ञान की ज्योति होती है बस उसे हमें पहचानने की जरूरत होती है ।
दूसरों के अच्छे गुणों को ग्रहण करो, बुरे गुणों से दूर रहो ।
दुसरों की उन्नति से ईर्ष्या मत करो बल्कि उसके अच्छे गुण ग्रहण करके उसके बराबर होने का प्रयास करना चाहिए। प्रातःकालीन नित्यनियम पूजा, जिनाभिषेक, शांतिधारा के पश्चात आचार्य श्री ने श्री नेमिनाथ जैन मंदिर बोहरा कॉलोनी में ग्रीष्म कालीन प्रवास के दौरान ऋषभनाथ जिनालय में कहे । उन्होंने " तू " व "आप" मे अंतर बताया कि भले ही आप शब्द सम्मानजनक है परंतु "तू" शब्द में अपनापन व नजदीकियां होती है ।भगवान महावीर व आचार्य सन्मति सागर महाराज के चित्र अनावरण व दीप प्रज्जवल भंवर लाल बज,अमोलक चंद जैन, ,महावीर प्रसाद जैन, ने किया । आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन शांति लाल ,पारस कुमार, विनोद कुमार,राकेश जैन ने किया । सीमा जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन भागचंद जैन ने किया ।
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