अन्याय से कमाया धन कभी पचता नहीं। इतिहास पढ़ना सरल है, लिखना बहुत कठिन। रूढ़ियों से हटकर चलने वाले लिखते हैं इतिहास -मुनि आदित्यसागर जी महाराज
केकड़ी। हमारे जाने के बाद यदि हमें कोई जिंदा रखता है, तो वह हमारा नाम है। इसके लिए हमें इतिहास बनाना पड़ेगा। इतिहास पढ़ना सरल है, मगर इतिहास लिखना बहुत कठिन। दुनिया की रूढ़ियों से हटकर चलने वाले ही इतिहास लिख पाते हैं, इसके लिए चार गुना मेहनत, दस गुना त्याग व सौ गुना सहना पड़ता है। अक्सर लोग उसी के पीछे भागते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है, लेकिन ये जरूरी नहीं कि वो अच्छा हो। जो अच्छा लगे, उसकी जगह उसे स्वीकार करना चाहिए, जो अच्छा हो। यह बात श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्यसागर जी महाराज ने यहां दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में चल रही ग्रीष्मकालीन प्रवचनमाला के अंतर्गत शुक्रवार को सुबह धर्मसभा में प्रवचन करते हुए कही।
उन्होनें कहा कि जो लोग रूढ़ियों में चलते हैं, वह केवल इतिहास पढ़ते हैं और जो रूढ़ियों को तोड़ते हैं, वे इतिहास लिखते हैं। रूढ़ियां हमें डरपोक बनाती है। यदि हमें जीवन में उन्नति करना है, तो अपने नजरिए को प्रारंभ से ही स्पष्ट रखना चाहिए। अपना कार्य, अपनी रुचि के अनुसार ही निर्धारित करना चाहिए। उन्होनें मेरी भावना काव्य की एक सूक्ति 'कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे, लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे' की व्याख्या करते हुए कहा कि उत्कृष्ट समाधि उसी की होगी, जिसने अपने जीवन पथ पर न्याय मार्ग को अंगीकार किया हो। यदि हम ईमानदारी से जीवन में कार्य करेंगे तो कार्य सफल होगा। अन्याय से कमाया धन कभी पचता नहीं है। कोई हमें अच्छा कहे, तो उस पर अभिमान ना करो और यदि कोई हमें बुरा कहे, तो इसे अपमान ना समझो। यदि कोई व्यक्ति हमारी प्रशंसा करें, तो उसका श्रेय हमारे सहयोगियों में बांट देना चाहिए। कोई भी व्यक्ति हमें तभी तक परेशान कर सकता है, जब तक हमारे अशुभ कर्म उदय में होते हैं।
धर्म सभा में मुनि श्री अप्रमीत सागर जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि जब संसार में प्राणी जन्म लेता है तो वह रोता है, मगर परिवार व संसार हंसता है, प्रसन्न होता है। पर जीवन तभी सार्थक है, जब अंत समय में आप मुस्कुराएं, पर दुनिया रोए। काम ऐसा करें कि नाम हो जाए और नाम ऐसा करो कि जिसे सुनते ही काम हो जाए। दुनिया में सबसे अच्छा कार्य वही है, जिसे हम दूसरों को कह सके, बता सकें। जिसे हम कह ना सके, वह कार्य अच्छा नहीं होता है। जो प्रतिकूलताओं में भी स्थिर होकर पुरुषार्थ करें, परिणाम की चिंता नहीं करें, वही मनुष्य जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छूता है। यदि छोटे व्यक्ति बड़ा कार्य करते हैं, तो अच्छा है, पर बडा व्यक्ति छोटा काम करें तो अच्छा नहीं है।
धर्मसभा के प्रारम्भ में माधुरीदेवी, मनीष, आशीष, अंश व दक्ष टोंग्या परिवार ने आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के चित्र का अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया तथा मुनि आदित्यसागर जी महाराज व मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन कर उन्हें शास्त्र भेंट किये।



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