जैन संतों ने किए केशलौंच, हाथों से घास-फूस की तरह उखाड़े सिर, मूंछ व दाढ़ी के केश।
केकड़ी। उत्कृष्ट तप, साधना, अहिंसा, स्वावलम्बन व अपरिग्रह से भरे वैराग्य का प्रतीक माने जाने वाले दिगम्बर जैन संतों की कठिन चर्या का एक उदाहरण सोमवार को उस समय यहां दिगम्बर जैन चैत्यालय भवन में देखने को मिला, जब यहां कुछ दिनों से विराजमान श्रुत संवेगी मुनि आदित्यसागरजी व मुनि अप्रमितसागरजी ने केशलौंच किये। मुनियों ने केशलौंचन की क्रिया ब्रह्ममुहूर्त में मुंह अंधेरे ही शुरू कर दी, जो भोर का उजाला फैलने तक सम्पन्न हुई। जैसे ही दिगंबर मुनियों ने अपने केशों को अपने हाथों से उखाड़ा तो उपस्थित जैन समुदाय भावविह्वल हो उठा।
बताया गया कि केशलोंच करना जैन मुनियों की तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा है, इसमें वे घास-फूस की तरह अपने हाथों से सिर, मूंछ और दाढ़ी के बालों को उखाड़ते हैं। इस दिन दोनों मुनियों ने निराहार रहते हुए अपने कर्मों की विराधना करते हुए वैराग्य की भावना से केशलौंचन किया। केशलौंच करते समय जैन मुनियों ने कंडे की राख का उपयोग किया। बताया गया कि ऐसा जैन मुनि इसलिए करते हैं, जिससे कि केशलौंच करते समय पसीने के कारण हाथ न फिसले और यदि रक्त निकले, तो उसे रोका जा सके। उल्लेखनीय है कि बाइस परिषहों को सहते हुए दिगम्बर जैन संतों की कठिन साधना सारे संसार में सन्यास धर्म का सर्वोत्तम आदर्श मानी जाती है। अपनी घोर तपस्या एवं साधना के बल पर जनमानस को अचंभित करने वाले दिगम्बर जैन मुनि दिगंबर रहकर शीत, ग्रीष्म व वर्षा ऋतुओं के तीव्र प्रकोप को बिना किसी आश्रय, मजबूत मनोबल के साथ सहन करते हैं।
बघेरा में त्रयकल्याणक उत्सव बुधवार को
केकड़ी। सकल दिगंबर जैन समाज केकड़ी के तत्त्वावधान में बुधवार को निकटवर्ती ग्राम बघेरा स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र में प्रतिवर्ष की भांति तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ का जन्म, तप व मोक्ष कल्याणक भक्तिभावपूर्वक धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके अंतर्गत सुबह सात बजे जिनेन्द्र अभिषेक, आठ बजे श्री शांतिनाथ पूजन विधान तथा दस बजे शांतिधारा के कार्यक्रम होंगे। यह जानकारी देते हुए जैन सोशल ग्रुप के महेंद्र पाटनी ने बताया कि विधान के पश्चात समाज का वात्सल्य भोज होगा। केकड़ी से क्षेत्र पर जाने के लिये वाहन व्यवस्था सुबह देवगांव गेट के समीप स्थित चैत्यालय के यहां उपलब्ध रहेगी।


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