जब विधायक थे, तो जिला मांगते थे; अब मंत्री हैं, तो 'गलत' बता रहे हैं"
राजनीति में नेताओं का पलटी मारने का खेल हमेशा से देखा गया है। यह कहना मुश्किल है कि नेता कब अपने बयान से पलटी मार जाए। ऐसा ही एक मामला भजनलाल सरकार के जलदाय मंत्री कन्हैया चौधरी का है। कभी गहलोत सरकार में विधायक रहते हुए, उन्होंने मालपुरा को जिला बनाने की मांग की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देने की भी पेशकश की थी। अब जब वह मंत्री बन गए हैं, तो नए जिलों के लिए 2000 करोड़ के खर्च का हवाला देकर गलत ठहराने लगे हैं। इसको लेकर लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया है।
पुराने दिन, पुराने बयान
कहानी की शुरुआत होती है पिछले साल की, जब कन्हैयालाल चौधरी मालपुरा से विधायक थे, विधायक अभी है, लेकिन विधायक के साथ अब मंत्री भी है। उस समय वह मालपुरा को जिला बनाने की मांग पर इतने अड़े हुए थे कि उन्होंने अपनी विधायक की कुर्सी को दांव पर लगा दिया था। चौधरी साहब का कहना था, “मालपुरा सबसे पुराना उपखंड है। यहां अंग्रेजों के जमाने में एसडीएम के ऊपर लेवल का अधिकारी बैठता था।” मालपुरा को जिला बनाने की मांग उनकी राजनीतिक रगों में बह रही थी।
जनाब इतने जोश में थे कि उन्होंने मुख्यमंत्री से यह मांग तक कर डाली थी। वहीं व्यास सर्किल पर अनशन पर बैठे युवा, जो जिला बनने की मांग को लेकर अड़े हुए थे, उनके लिए कन्हैयालाल चौधरी किसी मसीहा से कम नहीं थे। उनकी अपीलों के बावजूद अनशनकारी युवा टस से मस नहीं हुए, और चौधरी साहब को वहां जाकर उनके साथ खड़ा होना पड़ा। तब उनका नारा था, “मालपुरा जिला बनाओ, अन्यथा हम मैदान में उतरेंगे।”
चलिये, थोड़ी यादें ताजा कर लेते हैं। बात है पिछले साल की, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल के आखिरी पलों में तीन नए जिलों की घोषणा की थी। उन जिलों में मालपुरा का नाम शामिल था। लेकिन भजनलाल सरकार आते ही यह घोषणा- घोषणा ही रह गई।
मंत्री बनने के बाद की 'पलटी'
अब जब कुर्सी बदल गई और मंत्री जी के कंधों पर ज़िम्मेदारी का वजन आ गया, तो सुर भी बदल गए। कभी खुद जिला बनाने की मांग पर धरने वालों के साथ थे, अब कह रहे हैं, “जिले बनाने के लिए 2000 करोड़ का बजट चाहिए।” अब मंत्री जी कह रहे हैं कि जिले बनाने का फैसला जनभावना के अनुरूप होगा, और यह जल्दबाजी में किए गए फैसले थे।
मालपुरा, जो कभी चौधरी साहब की प्राथमिकता थी, अब उस पर उनका ध्यान ही नहीं है। कह रहे हैं, “प्रतापगढ़ 2008 में जिला बना था, अभी तक वहां की सुविधाएं पूरी नहीं हो पाई हैं।” मंत्री जी, अगर इतने ही चिंतित थे, तो एक साल पहले क्यों नहीं सोचा? अब कुर्सी मिल गई, तो जनता के 2000 करोड़ की चिंता सताने लगी। मंत्री जी कह रहे हैं कि सारे नए जिले जल्दबाजी में बनाए गए थे और अब उनका पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है।
सोशल मीडिया की सच्चाई
सोशल मीडिया पर कन्हैयालाल चौधरी के पिछले साल के बयान खूब वायरल हो रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं, “मंत्री जी, अब क्यों बदल गए आपके सुर?” वो वादे, वो बातें, सब कहां चली गईं? जब विधायक थे, तो कुर्सी छोड़ने को तैयार थे, और अब मंत्री बन गए तो जनता की फिक्र सताने लगी?
आखिर में…
कहानी का सार यह है कि राजनीति में वक्त के साथ सब बदल जाता है, यहां तक कि नेताओं के बयान भी। पलटीमार राजनीति इसका ताजा उदाहरण है। कभी मालपुरा को जिला बनाने के लिए जान देने को तैयार थे, और अब मालपुरा तो जिला बना नहीं, अन्य जिले बनाने की प्रक्रिया को गलत ठहरा रहे हैं। अब देखना यह है कि नए जिलों का क्या होता है, और मंत्री जी की अगली पलटी किस दिशा में होती है।

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