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केकड़ी के अभिलेखों से इतिहास को नई दिशा: पुरातत्व सर्वेक्षण की खोज

केकड़ी जिले के बघेरा गाँव में स्थित प्राचीन शिलालेखों का अध्ययन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की लखनऊ शाखा द्वारा किया गया। इन शिलालेखों से क्षेत्र के अतीत के वैभव का पता चलता है और यह जानकारी इतिहास के नए पहलुओं को उजागर करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। शुक्रवार को पुरातत्व सर्वेक्षण के उपनिदेशक डॉ. आलोक रंजन तिवारी और उनके सहयोगी कमलेश कुमार ने इन शिलालेखों की छापें लीं। इस अध्ययन के दौरान क्षेत्र के शिक्षाविद बृजकिशोर शर्मा और इतिहासकार पुष्पा शर्मा भी उपस्थित थे।

बघेरा ग्राम का ऐतिहासिक महत्त्व

बघेरा ग्राम जिसका प्राचीन नाम व्याघ्रपादपुर था अपने समृद्ध इतिहास और पुरातात्विक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। इतिहासकार पुष्पा शर्मा ने अपने शोध प्रबंध में इस क्षेत्र की अनेक पुरातात्विक सामग्रियों का उल्लेख किया है। वह इस क्षेत्र की पुरानी धरोहरों के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। बघेरा का प्रसिद्ध वराह मंदिर और ऐतिहासिक तोरणद्वार आज भी पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं।


शिलालेखों की छाप विधि

पुरातत्व सर्वेक्षण दल ने शिलालेखों की छाप लेने के लिए विशेष विधि का उपयोग किया। पहले शिलालेखों को साफ कर उन पर स्याही पोती गई फिर कागज की सहायता से अक्षरों की छाप ली गई। इस प्रक्रिया से प्राप्त शिलालेखों के पाठ में क्षेत्र के तत्कालीन प्रशासन संरचना और जीर्णोद्धार से जुड़ी जानकारियाँ मिलती हैं। इन अभिलेखों का विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन में प्रकाशन किया जाएगा जिससे क्षेत्र के इतिहास को समझने में मदद मिलेगी। बृजकिशोर शर्मा के अनुसार इन शिलालेखों का अध्ययन केकड़ी जिले के इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इससे न केवल अतीत के संदर्भों का पता चलेगा बल्कि नई ऐतिहासिक धारणाओं का भी विकास होगा।

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